योगेश राठौर, INDORE. मध्यप्रदेश के इंदौर में अपनी कॉलोनियों के प्लॉट बेचने के लिए कॉलोनाइजर किस तरह से खरीदारों को सुविधाओं के सब्जबाग दिखाते हैं, इसका एक और उदाहरण सामने आया है। मामला जाने-माने कॉलोनाइजर डी.एच.एल इंफ्राबुल्स इंटरनेशनल प्राइवेट लिमेटिड से जुड़ा है। साल 2011 में प्लॉट बुक करते समय खरीदार से एक साल में कई तरह की सुविधा उपलब्ध करवाने का वादा किया गया था। इसका उल्लेख सेल एग्रीमेंट में भी किया गया। खरीदार से दो साल में 7 लाख 20 हजार रुपए ले लिए गए लेकिन आज तक सभी सुविधाएं मुहैया नहीं करवाई जा सकी। पीड़ित ने उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया जिसके बाद फोरम ने फरियादी के पक्ष में फैसला देते हुए कॉलोनाइजर को आदेश दिया कि वह 12 प्रतिशत ब्याज के साथ मूल धन लौटाए और 50 हजार रुपए मानसिक कष्ट और 10 हजार रुपए परिवाद शुल्क भी खरीददार को अदा करे।
यह है मामला
न्यायिक सेवाएं उपलब्ध करवाने वाली फर्म विधिक सेवा के संचालक और उपभोक्ता मामलों के एडवोकेट चंचल गुप्ता ने बताया कि पंकज नागर और सचिन भंडारी ने डीएचएल इंफ्राबुल्स इंटरनेशनल प्रा. लि. से 2011 में प्लॉट खरीदा था। कॉलोनाइजर की ओर से गांव मौजा रेवाड़, तहसील देपालपुर में विकसित की जाने वाली मिलियन एरियस लैंडमार्क फेज 1 में 1500 वर्ग फीट के प्लॉट नंबर 355 का सौदा 336 रुपए प्रति वर्ग फीट में किया गया था और इसके लिए 16 अगस्त 2011 को सेल एग्रीमेंट हुआ। इसमें सौदे की दिनांक के एक साल के भीतर विकास कार्य पूरा करने के लिए आश्वस्त किया गया था। खरीदार से कुल 7 लाख 20 हजार रुपए जमा करवाए गए।
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विकास काम किया नहीं, खरीदार को लगवाता रहा चक्कर
सारी किश्ते जमा करवाने के बाद कई बार कॉलोनाइजर के दफ्तर के चक्कर काटे और विकास कार्य पूरा करने के लिए और रजिस्ट्री करवाने के लिए कहा लेकिन हर बार टालमटोल की गई। साल 2015 में फोरम में अपील की। एडवोकेट सपना यादव के माध्यम से फोरम के सामने मामला पेश किया और डीएचएल इंफ्राबुल्स इंटरनेशनल प्रा. लि. के वाइस चेयरमैन संजीव अग्रवाल, पार्टनर संतोष सिंह और एक्जीक्यूटिव चित्रा शर्मा के खिलाफ वाद दायर किया गया। फोरम को इस बात के तर्क और सबूत पेश किए गए कि कॉलोनाइजर ने अपना वादा पूरा नहीं किया और इतने साल बाद आज भी बाउंड्री वॉल, स्विमिंग पूल, जॉगिंग ट्रेक, सड़कें, डिवाईडर, खेल का मैदान, हॉर्स राइडिंग ट्रैक, बोरवेल्स, रेस्टोरेंट, डिस्को थेक, सिक्योरिटी गार्ड का काम पूरा नहीं किया जा सका है।
यह दिए आदेश
फोरम ने सेवाओं में कमी मानी और कॉलोनाइजर को आदेश दिया कि वह परिवादी को वाद दायर करने की तारीख से अब तक 7 लाख 20 रुपए की मूल राशि और इसका 12 प्रतिशत सालाना ब्याज एक महीने के भीतर अदा करें साथ ही मानसिक पीड़ा की क्षतिपूर्ति के लिए 50 हजार रुपए और परिवाद व्यय 10 हजार रुपए का भुगतान भी करे।